उत्तराखंड आंदोलनकारी परिषद ने किया बैठक का आयोजन
देहरादून। उत्तराखंड आंदोलनकारी परिषद से जुड़े सदस्यों ने शहीद स्थल पर बैठक का आयोजन किया। बैठक को मुख्य अतिथि के रूप मे सम्बोधित करते हुये परिषद के प्रवक्ता चिंतन सकलानी ने कहा की विश्व जनसंख्या दिवस एक महत्वपूर्ण अवसर है जो हमें तेजी से बढ़ती जनसंख्या और उससे जुड़ी चुनौतियों के प्रति जागरूक करता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन के मुद्दों पर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। 2023 के अनुमान के अनुसार, भारत की जनसंख्या 1.4 अरब के करीब है। यह संख्या तेजी से बढ़ रही है, और 2030 तक भारत के सबसे अधिक जनसंख्या वाले देश बनने की संभावना है। भारत दुनिया के सबसे बड़े और घनी आबादी वाले देशों में से एक है। जनसंख्या के मामले में यह केवल चीन से पीछे है, लेकिन भविष्यवाणी की जाती है कि आने वाले वर्षों में यह चीन को भी पीछे छोड़ सकता है। इसके कारण होने वाली गंभीर स्थिति को ध्यान में रखते हुए प्रतिवर्ष विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है। विश्व जनसंख्या दिवस हर साल 11 जुलाई को मनाया जाता है। यह दिन गर्भनिरोधक और परिवार नियोजन के महत्व को जागरूक करने के लिए समर्पित है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य लोगों को जनसंख्या विस्फोट, परिवार नियोजन, लैंगिक समानता, गरीबी, मातृ स्वास्थ्य और मानव अधिकारों से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना है। विश्व जनसंख्या दिवस की शुरुआत 1989 में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा की गई थी।1987 तक दुनिया की जनसंख्या पांच अरब के करीब पहुंच चुकी थी, जिसे लेकर देशों को चिंता होने लगी। इस ऐतिहासिक घटना ने वैश्विक समुदाय का ध्यान तेजी से बढ़ती जनसंख्या और इससे जुड़े मुद्दों की ओर आकर्षित किया। इसके बाद, संयुक्त राष्ट्र ने 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। विश्व जनसंख्या दिवस का मुख्य उद्देश्य परिवार नियोजन के महत्व को जागरूक करना है। सही जानकारी और संसाधनों की मदद से लोग अपनी परिवार की योजना बना सकते हैं और अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।
उन्होंने कहा की समाज में महिला और पुरुषों के बीच बेशक समानता आ रही हो, लेकिन जब भी बात परिवार नियोजन की आती है तो पुरुष महिलाओं से 100 गुना पीछे खड़े नजर आते हैं। देहरादून स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े इस बात की पुष्टि कर रहे हैं। परिवार नियोजन के मामले में पुरुषों की ओर से हर बार महिलाओं को आगे कर दिया जाता है। पुरुष नसबंदी के लिए आगे नहीं आते। आज भी न धारणा बदली है और न ही पुरुष नसबंदी के आंकड़े। पिछले एक साल की रिपोर्ट के मुताबिक देहरादून जिले में 22 पुरुषों ने और 2,231 महिलाओं ने नसबंदी करवाई है। आज भी पुरुष और परिवारजनों में यह धारणा बनी हुई है कि पुरुष नसबंदी करवाने से शारीरिक कमजोरी आ जाती है। जबकि, ऐसा नहीं है। पुरुष नसबंदी पूरी तरह सुरक्षित है और इसके बाद पुरुषों को शारीरिक कमजोरी नहीं आती। वह अपने सभी कार्य सुचारू रूप से कर सकते हैं। आशा कार्यकर्ताएं परिवार नियोजन के लिए दंपतियों को प्रेरित करती हैं और उन्हें स्वास्थ्य केंद्र तक ले जाती हैं। महिलाएं मान जाती हैं, लेकिन पुरुष इसके लिए आगे नहीं आते। परिवार नियोजन के मामले में आज भी पुरुष महिलाओं से 100 गुना पीछे हैं।
इस अवसर पर मुख्य रूप से संरक्षक नवनीत सिंह गोसाई, प्रवक्ता चिंतन सकलानी, उपाध्यक्ष प्रभात डंडियाल, जिला महासचिव निशा मस्ताना, सचिव जगमोहन रावत, बलेश बवानिया, विकास रावत, राहुल, पुष्प लता, दुर्गा ध्यानी, कल्पेश्वरी नेगी, सुभागा फरशवान, पुष्पा आदि ने अपने विचार व्यक्त किये।