उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोक पर्व फूलदेई त्योहार

देहरादून। चैत्र संक्रांति 15 मार्च को है और इसी दिन कुमाऊं का पारंपरिक त्योहार फूलदेई भी मनाया जाएगा। तभी से बसंत ऋतु की शुरुआत हो जाएगी। इस वर्ष 15 मार्च को शीतलाष्टमी भी होगी। मीन संक्रांति के दिन भूमि, वस्त्र और दान का महत्व होता है। पूरे चैत्र माह में बहन-बेटियों को भिटौली देने की भी परंपरा है।यह माह भाइयों की ओर से भिटौली, पकवान, दक्षिणा देने के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। फूलदेई के दिन कन्याओं को चावल, गुड़, दक्षिणा, पुष्प देकर संतुष्ट करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार, फूलदेई में जिस घर की देहली पर पूजन कराकर व दक्षिणा देकर कन्या को सम्मान सहित विदा किया जाता है, उसमें लक्ष्मी का वास होता है। इस माह बहनों को यादकर भिटौली देने से सभी पापों का नाश और बहनों का आशीर्वाद भाईयों के कई कुलों का उद्धार करता है। इस दिन सूर्य भगवान कुंभ राशि से मीन राशि में सुबह 6ः34 मिनट पर संचरण करेंगे जिस कारण कुंभ सौर पक्षीय मास समाप्त हो जाएगा और चैत्र सौरमास की शुरुआत हो जाएगी जिसे खर मास यानी काला महीना भी कहा जाता है। खर मास होने के कारण, विवाह यज्ञोपवीत संस्कार तथा महत्वपूर्ण धार्मिक कार्यों को करने के लिए 14 अप्रैल तक इंतजार करना होगा।फूलदेई पर्व की उत्तराखंड में विशेष मान्यता है। फूलदेई चैत्र संक्रांति के दिन मनाया जाता है क्योंकि हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र मास ही हिंदू नववर्ष का पहला महीना होता है। इस त्योहार को खासतौर से बच्चे मनाते हैं और घर की देहरी पर बैठकर लोकगीत गाने के साथ ही घर-घर जाकर फूल बरसाते हैं। इस वर्ष 15 मार्च के दिन फूलदेई का पर्व मनाया जाएगा। ज्योतिषानुसार इस साल फूलदेई का शुभ मुहूर्त सुबह 6 बजकर 3 मिनट से 7 बजकर 56 मिनट तक रहेगा।
फूलदेई से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है जिसके अनुसार एक समय की बात है जब पहाड़ों मं घोघाजीत नामक राजा रहता था। इस राजा की एक पुत्री थी जिसका नाम था घोघा। घोघा प्रकृति प्रेमी थी। एक दिन छोटी उम्र में ही घोघा लापता हो गई। घोघा के गायब होने के बाद से ही राजा घोघाजीत उदास रहने लगे। तभी कुलदेवी ने सुझाव दिया कि राजा गांवभर के बच्चों को वसंत चैत्र की अष्टमी पर बुलाएं और बच्चों से फ्योंली और बुरांस देहरी पर रखवाएं। कुलदेवी के अनुसार ऐसा करने पर घर में खुशहाली आएगी। इसके बाद से ही फूलदेई मनाया जाने लगा।
उत्तराखंड के अनेक क्षेत्रों मं चैत्र संक्रांति से फूल देई मनाने की शुरूआत हो जाती है. बहुत से इलाके जैसे कुमाऊं और गढ़वाल में एक या दो नहीं बल्कि पूरे आठ दिनों तक भी फूलदेई मनाया जाता है. इके अतिरिक्त कुछ इलाकों में चैत्र का पूरा महीना ही फूलदेई मनाते हुए गुजरता है. यह त्योहार मन को हर्षोल्लास से भर देता है. इस त्योहार में प्रफुल्लित मन से बच्चे हिस्सा लेते हैं और बड़ों को भी अत्यधिक संतोष मिलता है. यह त्योहार लोकगीतों, मान्यताओं और परंपराओं से जुड़ने का भी एक अच्छा अवसर प्रदान करता है और संस्कृति से जुड़े रहने की प्रेरणा भी देता है.
फूलदेई त्योहार मुख्यतः छोटे छोटे बच्चो द्वारा मनाया जाता है। यह उत्तराखंड का प्रसिद्ध लोक पर्व है। फूलदेई त्योहार बच्चों द्वारा मनाए जाने के कारण इसे लोक बाल पर्व भी कहते हैं। प्रसिद्ध त्योहार फूलदेई चैैत्र मास के प्रथम तिथि को मनाया जाता है। अर्थात प्रत्येक वर्ष मार्च मे यह त्योहार मनाया जाता है। फूल सग्यान ,फूल संग्रात या मीन संक्रांति उत्तराखंड के दोनों मंडलों में मनाई जाती है। कुमाऊं गढ़वाल में इसे फूलदेई और जौनसार में गोगा कहा जाता है। उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में सौर कैलेंडर का उपयोग किया जाता है। इसलिए इन क्षेत्रों में हिन्दू नव वर्ष का प्रथम दिन मीन संक्रांति अर्थात फूल देइ से शुरू होता है। चैत्र मास में बसंत ऋतु का आगमन हुआ रहता है। प्रकृति अपने सबसे बेहतरीन रूप में विचरण कर रही होती है। प्रकृति में विभिन्न प्रकार के फूल खिले रहते हैं। नववर्ष के स्वागत की परम्परा विश्व के सभी सभ्य समाजों में पाई जाती है। चाहे अंग्रेजी समाज का न्यू ईयर डे हो ,या पडोसी तिब्बत का लोसर उत्सव हो। या पारसियों का नैरोज हो या सनातन समाज की चैत्र प्रतिपदा। फूलदेइ पर्व के रूप में देवतुल्य बच्चों द्वारा प्रकृति के सुन्दर फूलों से नववर्ष का स्वागत किया जाता है।
फूलदेई मनाने की विधि – उत्तराखंड के मानसखंड कुमाऊं क्षेत्र में उत्तराखंड के प्रसिद्ध लोकपर्व एवं बाल पर्व फूलदेई पर छोटे छोटे बच्चे पहले दिन अच्छे ताज़े फूल वन से तोड़ के लाते हैं। जिनमे विशेष प्योंली के फूल और बुरॉश के फूल का प्रयोग करते हैं। इस दिन गृहणियां सुबह सुबह उठ कर साफ सफाई कर चौखट को ताजे गोबर मिट्टी से लीप कर शुद्ध कर देती है। फूलदेई के दिन सुबह सुबह छोटे छोटे बच्चे अपने वर्तनों में फूल एवं चावल रख कर घर घर जाते हैं । और सब के दरवाजे पर फूल चढ़ा कर फूलदेई के गीत , ‘फूलदेई छम्मा देई दैणी द्वार भर भकार !! ” गाते हैं। और लोग उन्हें बदले में चावल गुड़ और पैसे देते हैं। छोटे छोटे देवतुल्य बच्चे सभी की देहरी में फूल डाल कर शुभता और समृधि की मंगलकामना करते हैं। इस पर गृहणियां उनकी थाली में ,गुड़ और पैसे रखती हैं। बच्चों को फूलदेई में जो आशीष और प्यार स्वरूप में जो भेंट मिलती है ,उससे अलग अलग स्थानों में अलग अलग पकवान बनाये जाते हैं। फूलदेई से प्राप्त चावलों को भिगा दिया जाता है। और प्राप्त गुड़ को मिलाकर ,और पैसों से घी / तेल खरीदकर ,बच्चों के लिए हलवा ,छोई , शाइ , नामक स्थानीय पकवान बनाये जाते हैं। कुमाऊं के भोटान्तिक क्षेत्रों में चावल की पिठ्ठी और गुड़ से साया नामक विशेष पकवान बनाया जाता है। उत्तराखंड के केदारखंड अर्थात गढ़वाल मंडल में यह त्यौहार पुरे महीने चलता है। यहाँ बच्चे फाल्गुन के अंतिम दिन अपनी फूल कंडियों में युली, बुरांस, सरसों, लया, आड़ू, पैयां ,सेमल ,खुबानी और भिन्न -भिन्न प्रकार के फूलों को लाकर उनमे पानी के छींटे डालकर खुले स्थान पर रख देते हैं। अगले दिन सुबह उठकर प्योली के पीताम्भ फूलों के लिए अपनी कंडियां लेकर निकल पड़ते हैं। और मार्ग में आते जाते वे ये गीत गाते हैं। ”ओ फुलारी घौर। झै माता का भौंर। क्यौलिदिदी फुलकंडी गौर । ” प्योंली और बुरांश के फूल अपने फूलों में मिलकर सभी बच्चे ,आस पास के दरवाजों ,देहरियों को सजा देते है। और सुख समृद्धि की मंगल कामनाएं करते हैं। फूल लाने और दरवाजों पर सजाने का यह कार्यक्रम पुरे चैत्र मास में चलता रहता है। अंतिम दिन बच्चे घोघा माता की डोली की पूजा करके विदाई करके यह त्योहार सम्पन्न करते हैं। वहाँ फूलदेई खेलने वाले बच्चों को फुलारी कहा जाता है। गढ़वाल क्षेत्र में बच्चो को जो गुड़ चावल मिलते हैं,उनका अंतिम दिन भोग बना कर घोघा माता को भोग लगाया जाता है। घोघा माता को फूलों की देवी माना जाता है। घोघा माता की पूजा केवल बच्चे ही कर सकते हैं। फुलारी त्योहार के अंतिम दिन बच्चे घोघा माता का डोला सजाकर, उनको भोग लगाकर उनकी पूजा करते हैं।