मडूवे की कमर्शियल वैल्यू गेंहू से भी अधिक

देहरादून। रागी को उत्तराखंड में “मड़ुआ” कहते हैं। यह अफ्रीका और एशिया के सूखे क्षेत्रों में उगाया जाने वाला एक मोटा अन्न है। जहां तक अनुमान है मडुवा की फसल छह माह में पक कर तैयार हो जाती है। मडुवा की फसल ऊँचे क्षेत्रों में अनुकूलित होने के कारण यह उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में सबसे अधिक उगाया जाता था (अब तो कुछ खेतिहर ग्रामीण मडुवे को केवल शौक के लिए उगाते हैं, और हम जैसे लोग भी कभी कभार अपनी यादें ताजा करने के लिए इसकी रोटी खाते हैं)। मडुवा अथवा रागी की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती, और उत्तराखंड के सीडीदार व ऊबड़ खाबड़ खेतों में जो रेतीली एवम् पीट मिट्टी (peat soil) होती है इसमें इसे आराम से उगाया जा सकता है, केवल एक या दो बार गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती है। मडुवा अथवा रागी स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत हेल्थी फ़ूड है, इन फैक्ट हमारे पूर्वजों का प्रधान आहार (staple food) मडुवा ही था। अब तो मडूवे की कमर्शियल वैल्यू गेंहू से भी अधिक है, इसलिए उत्तराखंड के बंजर और निर्जीव पड़ गए खेतों में बहुत ज्यादा मेहनत किए बगैर ही मडुवे की फसल को फिर से बड़ी मात्रा में उगाया जा सकता है। लेकिन उसके लिए उत्तराखंड सरकार को इनिशीएटिव लेने की और बेरोजगार युवाओं को जागरूक करने की आवश्यकता है।